मां – सौतेली
मां – सौतेली
मां, एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही करुणा, दया, वात्सल्य, ममता, त्याग ऐसे ही अनगिनत शब्द हर किसी के दिमाग में आ जाते हैं। ईश्वर से पहले मां का दर्जा माना जाता है क्यूंकि वो इस दुनिया की सबसे बड़ी सृजनकर्ता और पालनहार है। स्वयं के रक्त, मज्जा से वो अपनी संतान को जन्म देती पालती पोसती है।
सौतेली मां, शब्द सुनते ही ऐसा लगता है जैसे अमृत के कलश में किसी ने विष भर दिया हो। एक क्रूर सी महिला जो अचानक एक हंसते खेलते घर में चली आई और आते ही उस घर के पिता और बच्चों के बीच दीवार बन कर खड़ी हो गई। एक ऐसी दीवार जिसमें दिखता तो सब कुछ है पर दिखाई वो ही देता है जो वो दिखाना चाहती है।
जो एक अनाथ अबोध बच्चे को उसके पिता के सामने तो प्यार करने का दिखावा करती है पर उसकी पीठ पीछे बच्चे का जीवन नर्क से भी बदतर बना देती है।
घर के छोटे बड़े सब काम करवाती है, तरह तरह की यातनाएं देती है और फिर गाहे बगाहे, बात बेबात मारती है, जली कटी सुनाती है, खाना नहीं देती, अंधेरी कोठरी में नन्ही सी जान को बंद कर देती है.....इत्यादि इत्यादि...... इत्यादि।
कुछ ऐसी ही छवि अंकित है ना हम सब के दिलों में......
भूल जाते हैं यशोदा मां को, जिनकी कोख से कान्हा ने जन्म तो नहीं लिया पर फिर भी उनके जीवन का सार, उनकी सांसों का हर एक तार सिर्फ और सिर्फ कान्हा से ही जुड़ा है। कान्हा और माता यशोदा का प्रेम इतना गहरा था कि कृष्ण जी की असली माता देवकी को बाद में याद किया जाता है पहले माता यशोदा का नाम आता है।
माता कुंती, बहुत कम लोगों को याद रहता है कि पांच पांडवों में नकुल और सहदेव कि माता मादरी थी, परंतु आजीवन माता कुंती ने अपने सगे और सौतेले पुत्रों को हमेशा ही एक सा प्यार दिया। इसलिए सभी पांडव कुंती पुत्र के नाम से ही हमेशा जाने जाते रहे।
कितना मुश्किल होता होगा किसी 8/10 साल के बच्चे को यकीन दिला पाना कि बेटा चिंता मत करो मैं तुम्हें तुम्हारी मां की तरह ही प्यार करूंगी।
अबोध मन शायद समझ भी नहीं पाता होगा, कि क्या दिखावा है और क्या असल में हकीकत।
और फिर घर के बाकी लोग, जिन्हे वो सालों से जानता है विश्वास करता आया है वो भी तो कभी कभी उसे गुमराह कर देते ना और मां बच्चों के रिश्ते को संदेह की दीमक अंदर अंदर से खोखला कर डालती होगी।
इस संसार में लाखों लड़कियों को विवाह के रूप में समझौता थमा दिया जाता है, कभी दहेज की वजह से तो कभी रंग रूप की वजह से या फिर उचित वर न मिलने के कारण।
ऐसे में उनके सपने, उनकी आशाएं बुरी तरह कुचल जाती हैं और फिर उनके हाथ हमेशा निराशा और हताशा लगती है।
जानता भी हूं और मानता भी हूं, कुछ हैं जो सही में मां शब्द का अपमान भी करती हैं।
पर उनकी संख्या नगण्य है, क्योंकि आज भी भारतीय नारी स्नेह और वात्सल्य का जीता जागता उदाहरण हैं।
आभार – नवीन पहल – १२.०६.२०२२ 🙏🙏
# प्रतियोगिता हेतु
नंदिता राय
14-Jun-2022 06:51 PM
बेहतरीन
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Shnaya
14-Jun-2022 12:06 PM
बहुत खूब
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Kaushalya Rani
13-Jun-2022 04:24 PM
Nice
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